हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Jul 24, 2022, 22:48 IST
| कौम से मौका परस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
राजनैतिक मौज मस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
राजधानी की बहुत घायल हुई है आत्मा ,
क्रोध में सारी है बस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
जो किया तूने बता कितना बड़ा अपराध है ,
पुलिस से भी जबरदस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
ताल से दरिया बना दो आँसुओं की बूंद से ,
जिद करे मत और सस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
कौम कुनवा साथ आये देख कर रोना तेरा ,
छोड़ दे अब राह गस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
अब किसानों की चिता की आड़ लेना छोड़ दे ,
जल न जाये घर गिरस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
अब तिरंगा मांगता प्रतिशोध उस अपमान का ,
आग की लपटों में हस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
काफिला"हलधर" बढ़ा तो भूल मत इतिहास को ,
बोल मत जस्ते को जस्ती ठीक है क्या सोच ले ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून