ग़ज़ल - विनोद निराश
Nov 7, 2022, 23:12 IST
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खुद ही जख्मो को सहलाया जाएं,
अपना गम लेके कहाँ जाया जाएँ।
गर न आए पास कोई तन्हाई में,
भूली यादों को पास बुलाया जाए।
कौन समझे किसी का हाले-दिल ,
क्यूँ दर्दे-दिल अपना सुनाया जाए।
इज़हार करने से भला क्या होगा ,
किस्सा-ए-बेवफाई छुपाया जाए।
शायद हो जाए कम दर्द दिल का ,
खुद को तेरी याद में रुलाया जाए।
बस एक कशक सी रह गई अधूरी,
अब उसे भी क्या दिखाया जाए।
बेशक हुआ बुरा साथ मेरे निराश ,
पर उनका अहसान जताया जाए।
- विनोद निराश , देहरादून