गजल.- ऋतु गुलाटी

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अजी प्यार से अब पुकारा न होता

फकत जिंदगी मे तुम्हारा न होता।।

अरे क्यो यूँ पागल हुऐ है जहाँ मे।

मिला  प्यार का बस सहारा न होता।

निभाते कभी साथ जीवन अजी तुम।

गमे - जिंदगी से  किनारा न होता।

खिली चाँदनी आसमां में कही भी।

हँसी रात मे जब निहारा न होता।

गमें- जिंदगी मे  कहाँ ? है बहारे।

मिला साथ *ऋतु को हमारा न होता।

- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़