गजल - ऋतु गुलाटी

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आज काँटा जिंदगी  में बो गये,

हासिले बोया अजी क्यो रो गये?

छोड़ रोता वो चले भी आज तो,

आह भरते,छोड़ हमको जो गये।

लौट कर आये नही वो आज तक,

खारजाहो में कही जा सो गये।

प्यार.करते थे कभी मानिंद-ए.कँवल,

तुम अकेला छोड कर क्यो खो गये।

सह न पायी *ऋतु जमाने  की क़जा,

वेवफा  जब से अजी  तुम हो गये।

- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़