ग़ज़ल - किरण मिश्रा 

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ख्वाबों में भी अब वो आते नहीं

ख्यालों में भी अब सताते नहीं.. !

बेचैनियाँ उनकी कहाँ खो गयी

नींदों से भी अब जगाते नहीं..!

भूल गये क्या वो जादूगरी...,

नज़र में क्यूँ अब समाते नहीं ..!

साँसो की सरगम ये सूनी पड़ी है

धड़कन की वीणा बजाते नहीं..!

धूप छाँव सा ये इश्क़ तुम्हारा

रूह में अपनी अब बसाते नहीं....!

लुका छिपी बहुत हो चुकी...

वापस घरौंदा क्यूँ सजाते नहीं..!

गैरों पे रहमत लुटाते फिरे.

घर की साँकल अब बजाते नहीं.!

#डा0 किरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा