गीतिका - मधु शुक्ला

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व्यस्तता से हो गया है क्यों हमें अति प्यार,

क्योंकि भौतिक साधनों का चाहिए अम्बार।

हैं सभी उपलब्ध साधन खो गया है चैन ,

मीत सच्चा अब हमें लगने लगा व्यापार।

अब न हमको रह गई है प्रेम की पहचान,

ढूॅ॑ढ़ता रहता सदा मन मात्र धन बौछार।

शांति के दो पल न जो धन दे हमें वह व्यर्थ,

चुन रहे हैं किस लिए फिर आप ये अंगार।

तय करें श्रम तालिका हम स्वस्थ जीवन हेतु,

दीर्घ , मंगल जिंदगी का 'मधु' यही आधार।

---- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश